साधू की झोपड़ी कि कहानी
हर अच्छी बुरी घटना के दो पहलू होते हैं। बुरा निष्कर्ष निकालना, या अच्छा अर्थ निकालना यह आप के हाथ में है।

साधू की झोपड़ी कि कहानी
एक गाँव के पास दो साधू अपनी अपनी झोपड़ियाँ बना कर रहते थे। दिन के वक्त वह दोनों गाँव जा कर भिक्षा मांगते और उसके बाद पूरा दिन पूजा-पाठ करते थे। एक दिन भारी तूफान और आँधी आने के कारण उनकी झोपड़ियाँ जगह-जगह से टूट-फूट गयीं और बहुत हद तक बर्बाद हो गयीं।
पहला साधू यह सब देख कर दुख के मारे विलाप करने लगा और बोला,
हे ईश्वर! तूने मेरे साथ यह अनर्थ क्यों किया | क्या मेरी भक्ति, तप, जप और पूजा का यही पुरस्कार है ?
इस तरह वह पूरा दिन बड़बड़ाते हुए, अपना जी जलाते हुए वहीं एक पेड़ के नीचे बैठ गया।
तभी वहाँ दूसरा साधू आ पहुंचा। उसने अपनी बर्बाद जोपड़ी देखी तो वह मुस्कुराने लगा। और उसी वक्त ऊपरवाले का धन्यवाद करने लगा। उसने कहा कि-
ऐसे भीषण तूफान में तो पक्के माकन भी क्षतिगरसत हो जाते है पर तुने तो मेरि आधी झोपड़ी बचा ली \ आज यह बात सिद्ध हो गयी कि तू मेरी भक्ति से कितना प्रसन्न है \और तेरी मुझे पर कितनी बड़ी कृपा है \
इस कहानी से हमे सीख – हर अच्छी बुरी घटना के दो पहलू होते हैं। बुरा निष्कर्ष निकालना, या अच्छा अर्थ निकालना यह आप के हाथ में है।