एक राजा और उसके दो बेटों की कहानी

शत्रु राज्य ने अपनी सेनाओं को वापस बुला लिया. अब सिर्फ रह गये समरवीर सिंह के मुट्ठी भर बागी सैनिक और राजकुमार शिशुपाल सिंह. उन्हें विदर्भ की सेना ने बड़ी आसानी से पकड़ कर जेल में डाल दिया. राजा अजय पाल सिंह ने अपनी सूझबूझ की वजह से अपने राज्य से खतरे को फिर से टाल दिया. उनकी इस चाल को देखकर उनके दुष्ट बेटे शिशुपाल को फिर से मुंह की खानी पड़ी

एक राजा और उसके दो बेटों की कहानी
ek raja aur uske do beto ki kahani

 एक राजा और उसके दो बेटों की कहानी 

विदर्भ के राजा अजयपाल सिंह वीर साहसी और सूझबूझ वाले व्यक्ति थे. कई राजा उनसे लड़ाईयां लड़ चुके थे. मगर सदैव उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी. अजयपाल सिंह के दो बेटे थे 'रक्षपाल सिंह' और 'शिशुपाल सिंह'. बड़ा बेटा रक्षपाल सिंह पिता की तरह समझदार था. और शिशुपाल सिंह वीर तो था, मगर वह विदर्भ का राजा बनना चाहता था.

 वह पिता और बड़े भाई को अपनी राह का रोड़ा समझता था. विदर्भ के सेनापति का नाम 'समरवीर' था. शिशुपाल ने उसे भी अपने साथ मिला लिया था. उन दोनों ने मिलकर एक षड्यंत्र रचा. वे सफल हो पाते इससे पहले कि उनका भांडा फूट गया.

 उन्हें पकड़ लिया गया. राजकुमार शिशुपाल ने अपनी गलती स्वीकार की और गलती करने के लिए पिता से माफी मांगी. राजा अजयपाल ने उसे माफ़ कर दिया. तथा सेनापति को राष्ट्रद्रोह के लिए देश निकाले की सजा सुनाई गई.

 इसी दौरान विदर्भ और सौराष्ट्र के बीच युद्ध छिड़ गया. विदर्भ की ओर से सेना की कमान बड़े भाई राजकुमार रक्षपाल सिंह ने संभाल रखी थी. महाराज अजयपाल शिशुपाल पर कुछ विश्वास करने लगे. उन्होंने युद्ध के दिनों में राज्य के शासन की बागडोर शिशुपाल को सौंप दी.

सौराष्ट्र का राजा जसपाल सिंह मौके की तलाश में था.  उसने पूर्व विदर्भ सेनापति समरवीर सिंह को खबर भिजवाई कि वह बाघी सेना लेकर विदर्भ में आ जाए. पर जब तक सौराष्ट्र को समरवीर सिंह की मदद मिल पाती उससे पहले ही रछपाल सिंह सौराष्ट्र का युद्ध जीतकर वापस आ गया.


युद्ध में हार जाने के बाद सौराष्ट्र ने विदर्भ से संधि कर ली. उनके यहां एक नौलखा सिहासन था. विदर्भ ने उसे अपने कब्जे में ले लिया. सौराष्ट्र ने मजबूरन संधि तो कर ली, मगर वह अपनी हार को कभी भुल न सका. शिशुपाल सिंह इस बात को जान गया था. उसने समरवीर सिंह को इशारा किया कि वह चुपचाप सौराष्ट्र से संबंध बना ले.

सौराष्ट्र ने शिशुपाल सिंह और समरवीर सिंह की ओट से विदर्भ को मज़ा चखाने की सोची. बगावत करने के लिए उन्होंने उन राज्यों का समर्थन भी जुटा लिया जो  विदर्भ से शत्रुता रखते थे.
शिशुपाल सिंह विदर्भ में ही षड्यंत्र रच रहा था. पर उसकी बागी योजनाओं का पता किसी को नहीं चला. योजना के अनुसार एक दिन शिशुपाल ने महाराज से शिकार करने के लिए जंगल में जाने की अनुमति मांगी. उसे शिकार करने के लिए अनुमति मिल गई.

 कई दिन हो गए पर शिशुपाल सिंह जंगल से लौटकर नहीं आया. महाराज को चिंता सताने लगी इतनी में ही कुछ सैनिक दरबार में उपस्थित हुए. उन्होंने कहा छोटे राजकुमार एक शेर की चपेट में आ गए, शेर उन्हें घसीटता हुआ एक गुफा में ले गया और खा गया. बड़े भाई रक्षपाल सिंह को शिशुपाल कि इस तरह मर जाने पर संदेह हुआ.

उसे लगा कि कहीं सिसुपाल किसी साजिश का शिकार तो नहीं हो गया. उसने कुछ गुप्तचरों को जंगल में भेजा. गुप्तचरों ने बताया कि जंगल में विदर्भ के विरुद्ध गुप्त सैनिक अभियान चल रहा है. उसका नेतृत्व शिशुपाल और समरवीर सिंह कर रहे हैं.

समाचार बहुत गंभीर था. राजा अजयपाल सिंह को पूरी जानकारी दी गई. जासूस ने बताया कि शिशुपाल सिंह के नेतृत्व में करीब 70 हजार सैनिक धावा बोलने की तैयारी कर रहे है. महाराजा अजयपाल सिंह बूढ़े हो गए थे, मगर उनकी सूझबूझ कम नहीं हुई थी. उन्होंने एक योजना बनाई. योजना के अनुसार सेना को गुप्त रुप से सौराष्ट्र की सीमा पर भेज दिया. और दूत के हाथों शिशुपाल सिंह के नाम एक पत्र भेजा.

पत्र में लिखा था-- "शाबाश!! बेटा मुझे तुम पर गर्व है. सौराष्ट्र तथा अन्य शत्रु राज्यों को समाप्त करने के लिए हमारी योजनाओं को सफल बनाना होगा. हम अवश्य सफल होंगे. क्योंकि शत्रु एकदम मूर्ख है. हमारी पहली चाल सेनापति समरवीर सिंह को बागी करार देकर राज्य से निकाल देने की थी. वह सफल रही. तुम पूरी तरह से सावधान रहना. किसी भी कीमत पर हमारा रहस्य उजागर न हो जाए. नहीं तो सारी योजना धरी की धरी रह जाएगी.

पत्र शिशुपाल सिंह के लिए था. मगर वह पत्र सौराष्ट्र की सैनिक के हाथ लग गया. और विदर्भ का सैनिक सौराष्ट्र के सैनिकों की पकड़ में आ गया. उनके सेनापति ने उससे कड़ी पूछताछ की.

 सैनिक ने सब कुछ बता दिया जो  महाराज अजयपाल सिंह ने उसे झूठ मूठ का सिखाया था. पूरी बात जानकर शत्रु बौखला गए. सौराष्ट्र ने यह संदेश अन्य शत्रु राजाओं तक भी पहुंचा दिया. उनके जासूसों को यह भी पता चल गया कि विदर्भ के सैनिक जंगलों के चारों ओर फैले हुए हैं.

शत्रु राज्य ने अपनी सेनाओं को वापस बुला लिया. अब सिर्फ रह गये समरवीर सिंह के मुट्ठी भर बागी सैनिक और राजकुमार शिशुपाल सिंह. उन्हें विदर्भ की सेना ने बड़ी आसानी से पकड़ कर जेल में डाल दिया. राजा अजय पाल सिंह ने अपनी सूझबूझ की वजह से अपने राज्य से खतरे को फिर से टाल दिया. उनकी इस चाल को देखकर उनके दुष्ट बेटे शिशुपाल को फिर से मुंह की खानी पड़ी.

 इस कहानी से हमे ये शिक्षा-  मिलती है कि दुष्ट व्यक्ति कभी किसी के सगे नहीं होते. अंत: दुष्ट व्यक्तियों से दूरी बनाकर रखें. 
उम्मीद है कहानी पसन्द आई होगी धन्यवाद