शिक्षक दिवस पर खास, 30 वर्षों से चल रहे गुरुकुल से निकले हजारों अधिकारी

शिक्षक दिवस पर उन्हें सबसे अधिक इस बात का गर्व है कि उनके शिष्य उनके सपने को पूरा करने के लिए पूरा सहयोग दे रहें हैं. उनका कहना है कि चूंकि उन्होंने बचपन से ही गरीबी को देखा, और यही कारण है

शिक्षक दिवस पर खास, 30 वर्षों से चल रहे गुरुकुल से निकले हजारों अधिकारी
  Teachers' Day

शिक्षक दिवस पर खास, 30 वर्षों से चल रहे गुरुकुल से निकले हजारों अधिकारी

 

Teachers' Day : कहा जाता है कि गुरु भगवान का दूसरा रूप होते हैं, क्योंकि वे निःस्वार्थ भावना से विद्यार्थियों को पढ़ाकर उनके भविष्य का निर्माण करते हैं. इसी भगवान को याद करने के लिए हम 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाते हैं. हमें अक्सर शिक्षकों के सामाजिक सरोकार का कार्य करने की कहानियां सुनने को मिलती हैं. ऐसी ही एक कहानी है जौनपुर के शिक्षक राम अभिलाष पाल की जिन्हें लोग गुरूजी के नाम से बुलाते हैं. राम अभिलाष पाल गरीब और वंचित समाज के बच्चों को पढ़ाते हैं. अभी तक उनके शिष्यों में से हज़ारों प्रशासनिक अधिकारी, चिकित्सक, इंजीनियर, प्रोफेसर, प्रवक्ता, शिक्षक जैसे तमाम पदों पर आसीन हैं. 
        
NDTV से खास बातचीत में राम अभिलाष पाल ने बताया कि उन्हें सबसे अधिक इस बात का गर्व है कि उनके शिष्य उनके सपने को पूरा करने के लिए पूरा सहयोग दे रहें हैं. उनका कहना है कि चूंकि उन्होंने बचपन से ही गरीबी को देखा, और यही कारण है कि वे अभाव में रहने वाले बच्चों की समस्या को बेहतर ढंग से समझते हैं. यही कारण रहा कि उन्होंने समाज के प्रत्येक वर्ग को समान शिक्षा प्रदान कराने का निश्चय किया. 

राम अभिलाष पाल ने बचपन से ही अभावों में अपना जीवन व्यतीत किया है. जौनपुर में जन्मे राम अभिलाष अपने ननिहाल में पढ़ा करते थे लेकिन नाना की मृत्यु के पश्चात वे अपने पैतृक निवास वापस आ गए. अपने विद्यार्थी जीवन को याद करते हुए वे बताते हैं कि उन्हें गंदी यूनीफॉर्म के कारण स्कूल से बाहर निकाल दिया गया था. वे बचपन से ही मेधावी छात्र थे और स्कूल के बाद कॉलेज में पढ़ना चाहते थे लेकिन पिता ने कहा था कि वे पढ़ाई का और बोझ नहीं उठा पाएंगे. लेकिन वे पढ़ना चाहते थे. 

उन्होंने बताया कि अन्य लोगों की सहायता से उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई की और बीएड की डिग्री पूरी की. पढ़ाई के बाद उन्होंने वंचित बच्चों को पढ़ाना शुरू किया और देखते ही देखते ये एक मिशन बन गया. अभिलाष पाल का मानना है कि समाज के हर तबके को समान शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए.

राम अभिलाष पाल के शिष्य डॉ विजय बहादुर यादव हैं. उनके साथ AIIMS में एसोसिएट  प्रोफेसर डॉ हरलोकेश  नारायण  यादव भी उनके शिष्य हैं. डॉ हरलोकेश  नारायण  यादव ने NDTV से कहा कि मैं पहली बार 1989 में गुरुकुल में पढ़ने के लिए आया. गुरूजी ने मुझे साइंस और मैथ्स में विशेष रुचि देखते हुए पढ़ाई पूरी करने के  लिए प्रेरित किया. उनसे  शिक्षा प्राप्त कर हमारी तरह हज़ारों छात्र उच्च पदों पर आसीन होकर राष्ट्र की सेवा  कर रहे हैं. परम्परा जो उत्तर प्रदेश  के जौनपुर ज़िले में स्थापित की उससे उस क्षेत्र के गरीब और असहाय छात्रों को आज भी निशुल्क शिक्षा प्रदान की जा रही है. 

वहीं लखनऊ में गृह मंत्रालय  में सहायक निदेशक के  पद पर कार्यरत आलोक रंजन पाठक ने NDTV से बातचीत में कहा कि गुरूजी  पारस पत्थर के  समान हैं. उनके छूने से मिट्टी भी सोने के समान हो जाती है. उनके पास प्रतिभाशाली छात्रों का भविष्य बदल देने का जादू है. हम लोगों की सोच का दायरा अत्यंत सीमित था, गुरूजी ने इसे विस्तार दिया. अपने सपने देखने और कुछ बनने की ललक  पैदा की. हमें बड़ा लक्ष्य  निर्धारित करने, उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दृढ़ संकल्प, लगन, निष्ठा से कठिन परिश्रम करने के लिए प्रेरित किया, जिसके फलस्वरूप मैं आज इस पद पर हूं. 

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जनपद में नगर निगम में प्रभारी अधिकारी मनोज कुमार यादव ने NDTV से कहा कि मैं 1996-97 का हाई स्कूल पास आउट व्यक्ति हूं. जब मैं हाई स्कूल में था तब गुरु जी ने मुझे कक्षा 9 के छात्रों को पढ़ाने का जिम्मा सौंपा ताकि मेरे ज्ञान की परीक्षा ली जा सके. ऐसा उस समय की परंपराओं में नहीं हुआ करता था. जब भी कोई छात्र जो हाई स्कूल में होता था और वह अपने विद्यालय से कोचिंग के लिए आता था तो चाहे रास्ते में 200 से अधिक छात्र-छात्राएं हों उस हाई स्कूल के छात्र के सामने से गुजरते थे जो सभी छात्र-छात्राएं रोड पर ही सीनियर छात्र को प्रणाम करते थे. मैं उस मंजर का वर्णन नहीं कर सकता हूं.  

मनोज कुमार यादव ने कहा कि शहर गुरुजी के विद्यालय से करीब आधा किलोमीटर दूर है. सभी छात्र पैदल ही गुरुजी के पास जाते थे और आज भी हम सभी चाहे जिस पद पर हैं, उच्च विद्यालय प्रांगण के बहुत दूर ही अपनी गाड़ी वाहन पार्क करके गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त करने जाते हैं. आज हजारों छात्र पूरे भारतवर्ष में गुरुजी के दिए हुए आदर्शों को बढ़ा रहे हैं. 

हैदराबाद में निजी कंपनी चला रहे कार्यरत रमेश कुमार मौर्या कहते हैं कि मुझे 1994 में हाईस्कूल के दिनों में शिक्षा ग्रहण करने का अवसर मिला. उनकी शिक्षा के वजह से ही मैं आज इस मुक़ाम पर हूं. मैंने कंपनी शुरू की, गुरु जी ने बहुत पसंद किया. उन्होंने कहा इस काम को अपना 100 प्रतिशत दो. काम जो भी हो हमेशा शीर्ष तक पहुंचने की कोशिश करो. हमारे मन में सरकारी सेवा में न जाने के बावजूद देश सेवा करने की भावना है. हमने अपना ख़ुद का व्यवसाय शुरू किया और हम कम से कम लगभग 500 परिवारों को रोज़गार दे रहे हैं. 

प्रयागराज में डॉ पंकज गुप्ता कहते हैं कि गुरूजी ने बहुत ही गरीब परिवार में जन्म लिया और बहुत ही साधारण जीवन को जीते हुए अपनी सर्विस पूर्ण की. मेरे सभी साथियों  ने मिलकर 2019 में ही पहली बार एक कार उन्हें गिफ्ट की. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पूरे भारत में शायद ही प्राइमरी का कोई टीचर हो जिसके पास कार न हो. परंतु मेरे गुरु जी 60 साल की सेवा के बाद भी एक कार नहीं खरीद पाए, क्योंकि अपना संपूर्ण वेतन गरीबों की शिक्षा उत्थान और आदर्शों के निर्वहन में खर्च करते रहे.